Sunday, September 12, 2021

#मैं बुनकर हूं।



मैं बुनकर हूं।

मैं बुनकर हूं।
करता रहता हूं 
थोड़ी सी बुनाई
सफर में,
राहों में, 
जो भी मिलते हैं 
बसा लेता हूं।
अपने दिल की 
हर धड़कन पर।
उनसे अपने 
रिश्तों के, 
संबंधों के, 
प्रेम को,
प्यार को,
मर्म को,
स्पर्श को,
भाव को,
अहसास को,
साधना को,
ममता को,
त्याग को ,
तपस्या को,
अपनत्व को,
अर्पण को,
समर्पण को,
ताकि सुलझा रहूं,
अपनों के बीच
अपना होकर
ताकि कोई उधेड़ न सके,
मेरी बुनी हुई 
रिश्तों की,
अपनों की 
छोटी सी
प्यारी सी
दुनिया को।

स्वरचित मौलिक रचना

✒️सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी

Friday, July 23, 2021

#अच्छा है..........!



रोज मिलकर चले जाते हों।
आज ठहर जाओ तो अच्छा है।।

कुछ बातें जो करनी हैं तुमसे।
ज़रा बैठो पास मेरे तो अच्छा है।।

कुछ बातें जो अक्सर भुल जाते हों।।
लबों से बयां भी कर दो तो अच्छा है।।

बातों ही बातों में रूठती बहुत हूं मैं।
अब थोड़ा मना भी लो तो अच्छा है।।

तुम्हारा घर छोटा, मिट्टी का आंगन हैं।
आंगन की तुलसी बना लो तो अच्छा है।।

मुझको परवाह नहीं है ज़माने भर की।
बस तुम्हारा साथ मिलें तो अच्छा है।।

तुम्हारे सफ़र में साथ चलुंगी हर पल।
अब थाम लो दामन मेरा तो अच्छा है।।

स्वरचित मौलिक रचना

✒️सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी

Tuesday, July 13, 2021

#इश्क़__हैं?

पहले दिन की खामोशियां ओर वो अनजाने चेहरे थे।
दो चार बातें करके हमने दोस्ती के नाते जोड़ दिए।

कल श्याम को मन्दिर में देख लिया हमको आते हुए।
आंखें बंद करके श्री जी की ओर हाथ जोड़ दिए।।

जुबां पर आकर अक्सर रुक जाती थी दिल की बातें।
रखकर कागज आज उसकी किताब के पन्ने मोड़ दिए।।

तुमसे बातें करना दिल को कितना अच्छा लगता है।
मैंने अपना हर दिन हर पल तुम्हारे साथ जोड़ दिए।।

हम जानते हैं तुम कह नहीं सकते हो अपने दिल की।
इसलिए आजकल हमने ज्यादा बतियाना छोड़ दिए।।

हर इश्क मुकम्मल हो इतना आसान नहीं सुरेश
मैंने तुम्हारी गली के चक्कर लगाना छोड़ दिए।।

स्वरचित मौलिक रचना

✒️सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी

Wednesday, July 7, 2021

₹मेरे_दिन



निकल जाता हूं सुबह सुबह, हाथ में टिफिन लेकर घर से।
देखता हूं चौराहों पर, काम की तलाश में भीड़ होती हैं।।

मैं भी जाकर खड़ा हो जाता हूं, कभी तो काम मिलेगा।
वहीं थोड़ा विश्वास ओर फिर कल आने की बात होती है।।

आज घर लौटते वक्त मैंने बाजार से होकर गुजरना चाहा।
जरुरतों के आगे कहां खुशियां खरीदने की बात होती हैं।।

ये जिंदगी भी न जाने कोन कोन से दिन दिखाती रहती हैं।
हम जैसों के लिए सपने, बस  देखने की रात होती हैं।।

न जाने कितने दिनों का सफ़र हैं बस चलते रहना है "सुरेश"।
घनघोर अंधेरी रात के बाद एक नई सुबह की बात होती है।।

स्वरचित मौलिक रचना

✒️सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी

Tuesday, June 29, 2021

#आषाढ़_के_बादल

हवाएं चलने लगी है, गांवों में बादलों की दस्तक है।
नजरें टिकी हुई घनघोर घटाओं की ओर मस्तक है।
प्रकृति के यौवन को अब ओर ना बिखरने दो।।
तपती रहीं जेठ की गर्मी, आषाढ़ के बादल बरसने दो।

फिर बहने लगेंगी कल कल करती गांव की छोटी नदियां।
सांझ ढले गीत गाएगी मिलकर गांव की सारी संखिया।
मौसम भी सुहाना हो जाएगा घूमने का मौका मिल जाएगा।
बनेंगे चाट पकौड़ी सबको खाने में मजा आ जाएगा।
बहुत दिनों से दुबके रहे अब घर से बाहर निकलने दो।
तपती रहीं जेठ की गर्मी अब आषाढ़ के बादल बरसने दो।

मौलिक एवं अप्रकाशित

✍️सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी

Thursday, June 10, 2021

#नए_दौर_के_रिश्ते

नए दौर के रिश्ते, दिलों में मातम पसरा है।
नफरतें आम हुईं कौन दिलों में ठहरा है।।

टूट जाती हैं कसमें हर पल साथ निभाने की।
न जाने क्यों दिलों में शक का दाग़ गहरा है।।

बातें करते हुए जिनको सुकुन मिलता था।
कहते हुए सुना अब थोड़ा कान से बहरा हैं।।

भरोसा भी नहीं ठहरता ज्यादा दिनों तक।
सभी के घरों में चालाकियों का पहरा है।।

छुपा लेते हैं हर ग़म चेहरे से बताते नहीं।
नम हो जाएं तो कहते आंखों में कचरा है।।

तुम क्या बताओगे कुछ नहीं जानते 'सुरेश'।
हंसती आंखें तुम्हारी योवन कल निखरा है।।

✍️सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी
     स्वरचित एवं अप्रकाशित

Wednesday, April 21, 2021

#जिंदगी_के_आख़री_लम्हे।

कुछ सपने हमने भी संजोए थे, बैठकर अपने घर आंगन में।
कुछ घर की जिम्मेदारियों ने, कुछ उम्र निगल कर चली गई।।

ये जिंदगी भी अच्छे दिनों का, लालच बहुत दिखाती है।
काम पर लगा कर मुझको, मेरा इतवार लेकर चली गई।।

कुछ दिनों तक खुशियां बिखरी रहीं, मेरे छोटे से आंगन में।
थोड़ी परंपराओं ने, बाकी बची नई नस्लों के संग चली गई।।

चाहते तो हम भी थे थोड़ा अपना अपना बचाकर रख लेते।
कुछ मेरी खामोशियां, बाकी पत्नी की ज़िद लेकर चली गई।।

सफ़र की शुरुआत जहां से की, आकर वहीं बैठ गए।
बेटो को बहुएं बांध गई, बेटियां उनके पीहर चली गई।।

✍️©️सुरेश बुनकर 'बड़ीसादड़ी'

Saturday, April 10, 2021

#समय-चक्र


कुछ बातें हैं जो अब किसी से कहता नहीं।
दिखाकर हंसता चैहरा खुद को मना लेता हूं।।

परिवार में पापा, मां, बिवी ओर बच्चें भी हैं।
पता न चले उनको एक दो रोटी खा लेता हूं।।

बड़ी मुसीबतों से गुजर रहा हूं आजकल।
कोई हंसे न मैं अपनी बातें दबा लेता हूं।।

मदद भी मांगता हूं इस मुश्किल घड़ी में ।
जो करे, ना करें मैं दुआएं मांग लेता हूं।।

कुछ लोग जो अभी हंस रहे हैं मुझ पर।
उनके लिए भी स्नेह बनाकर रख लेता हूं।

बुरा वक्त किसी को कहकर नहीं आता।
मैं हमेशा आम इंसान बनकर रह लेता हूं।।

✍️©️ सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी

Saturday, April 3, 2021

घर के सामने

घर के सामने।

पहली ही नज़र में दिल में उतर गई वो लड़की।
वो रहती भी है तो मेरे पास वाले घर के सामने।।

अक्सर गुजरती है देखकर मुझे बैठा बरामदे में।
कल उसकी पाजेब भी खुली मेरे घर के सामने।।

मैं अक्सर नजरें चुराकर देख लेता उसको मगर।
आज सहेलियों संग बैठी रही खुद के घर के सामने।।

यूं तो अभी तक एक भी मुलाकात नहीं हुई हमारी।
कल एक ही रिक्शे में बैठे अपने अपने घर के सामने।।

कहना तो चाह रहे हम दोनों अपने मन की बातें।
मगर हम आज फिर रुक गए अपने घर के सामने।।

✍️©️सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी

Tuesday, March 30, 2021

होली ~~ रंग-ए-इश्क़‌‌‌

होली ~ रंग-ए-इश्क़ 

बहुत दिनों बाद आज, हम फिर मुलाकात कर रहें।
एक नज़र मैंने ओर एक नज़र तुमने मिलाकर।।

देखने होली शहर की गलियों में निकल पड़े।
एक हाथ मैंने ओर एक हाथ तुमने थामकर।।

कुछ देर बैठें भी रहें, हम चाय के ठैले पर।
एक कप मैंने ओर एक कप तुमने थामकर।।

अल्फाज जो दफ़न थे, अभी तक जता दिए।
एक बात मैंने ओर एक बात तुमने बताकर।।

रात ढली गई थीं, हम भी घर की ओर चल दिए । 
एक कदम मैंने ओर एक कदम तुमने बढ़ाकर।।

प्रेम रंग में रंगकर, हमने भी मना ली होली।
एक रंग तुमने ओर एक रंग मैंने डालकर।।

✍️सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी

Sunday, March 28, 2021

होली आई होली आई।

*होली आई होली आई।*

होली आई होली आई, 
हम सब मिलकर होली मनाएं।
लाल पिली नीली गुलाबी,
रंग बिरंगी गुलाल लगाएं।।

भुल जाओ पुरानी बातें,
हम आपके आप हमारे।
रंग दो सबको प्रेम रंग में,
मिलकर सबको गले लगाएं।

ना नहीं ना तुम मना करना,
खुशीयों के रंगों में रंगने
कोई रह न जाए अकेला
मस्ती के रंग में सबको भिगोएं।

भुल जाओ क्या तेरा क्या मेरा
सभी है अपने ना कोई पराया।
आज न कोई तुम बेर रखना
ख़ुशी का इजहार सबको जताएं।

होली आई होली आई,
हम सब मिलकर होली मनाएं।
लाल पिली नीली गुलाबी,
रंग बिरंगी गुलाल लगाएं।।

✍️सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी

होली के पावन पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
https://www.instagram.com/p/CM85ZdPDCRg/?igshid=lyi4c6yb3m6f

Tuesday, March 16, 2021

उम्मीद........।


उम्मीद..........!

हां अब तो उम्मीद ही बचाकर रखीं हैं मैंने।
सिवाय इसके मैं ओर क्या रख सकता हूं।।

टूटा नहीं हूं
हारा नहीं हूं
बस कुछ बातें हैं
कुछ एहसास हैं
जो थाम रहें हैं मुझको
उनकी बातें रख लेता हूं।

थोड़ा हंस लेता हूं
थोड़ा रो लेता हूं
कभी थोड़ा खाकर
कभी भुखा सो जाता हूं
कभी कुछ नहीं मिलता
कुछ आशाएं रख लेता हूं।

मेरे भी अपने हैं
छोटे से सपने हैं
बहुत ज्यादा की बातें नहीं
ना बहुत बड़े इरादे है
बस आसमान को छूने
अपने कदम चल देता हूं।

चलो अब रूक जाता 
अब कुछ नहीं कहता 
मगर दिल से कहता 
झूठ नहीं सच कहता 
आप ने बताई है बातें
ज़हन में रख लेता हूं।

हां अब तो उम्मीद ही बचाकर रखीं हैं मैंने।
सिवाय इसके मैं ओर क्या रख सकता हूं।।

✍️सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी

Sunday, January 31, 2021

वो अहसास.................।


वो अहसास नहीं करता है मेरे होने न होने का।
कैसे कह दूं वो अब भी मुझसे प्यार करता है।।

महसूस कर लेता तो नहीं करता नजर अंदाज।
कैसे कहूं दूं वो मेरा अब भी इन्तजार करता है।।

किसी चेहरे को पढ़ना इतना आसान भी नहीं है।
कैसे कह दूं वो अब भी मुझसे मुलाकात करता है।।

सीखाओ किसी के अहसास को महसूस करना।
फिर कह दूं वो बनकर धड़कन धड़कता रहता है।।

✍️सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी

प्रकाशित पुस्तक 
"अक्षरांग- मेरी भावनाओं की लिखावट"
के पन्नों से

Tuesday, January 26, 2021

जिंदगी एक सफर...........।


कदम से कदम मिलाकर चलते हैं लोग।
आजकल कम से कम बोलते हैं लोग।।

बनावटी रिश्ते बनाकर भुल गए अपनों को।
आजकल अपनो से अपने ही दूर रहते लोग।।

जिंदगी एक सफ़र में चल रही सभी की।
सच कहूं एक दुजे से बहुत जलते हैं लोग।।

जरा संभलकर चलना अपने सफ़र में आप।
अपने ही अपनो की दीवार गिराते हैं लोग।।

✍️ सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी

Sunday, January 24, 2021

लोटकर मत आना............



कोई पास नहीं है ना कोई ख्वाब सजाएं है ।
अब खुद को अकेले रहना अच्छा लगता है।

सांझ ढले दहलीज पर कोई राह नहीं तकता।
अब देर से घर को लौटना अच्छा लगता है।

तुम कल भी नहीं थे पास, ना अब रहते हों।
अब दिवारो से बतियाना अच्छा लगता है।

बहुत दूर चले गए हो मेरी राह मत तकना।
अब सफ़र में अकेले चलना अच्छा लगता है।

सांवली बावली सी लड़की...........!!!!

हैं एक सांवली-बावली सी लड़की,  जो मेरे साथ सफ़र करती है  कोन हूं, कैसा हूं, मालूम नहीं, फिर भी ना कोई सवाल करती है। सोते-जागते, ...