एक खुबसूरत सफ़र है।
सर्द सुबह, ठंडी हवाएं।
खिड़की के पास,
मेरी एक सीट,
जहां बैठता हूं।
सफ़र तो सफ़र है।
जाने पहचाने।
कुछ अनजाने।
मगर हम मुसाफ़िर
अपनी मंजिल तक
सफ़र में रहते हैं।
सफ़र तो सफ़र हैं
कोई हम सफ़र है
बैचेन सी रहती
एक दीदार को,
ढूंढ लेती है नज़रें
ठहर जाती है।
एक चेहरे पर
ना इशारे ना बातें
आंखों ही आंखों से
समझ लेते हैं हम
हाल एक दूजे का
हां इसी सफ़र में
हां हां इसी सफ़र में
मेरी, उसकी जिंदगी है।
एक मनमीत जैसी
बातें, यादें, क़िस्से
कुछ उसके हिस्से
कुछ मेरे हिस्से
सुलझे हुए रिश्ते।
है कितने अच्छे।
दिल के सच्चे।
इस खुबसूरत सफ़र में....
इस खुबसूरत सफ़र में....
💕💕💕💕
स्वरचित एवं मौलिक
✍️सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी
No comments:
Post a Comment