Wednesday, April 21, 2021

#जिंदगी_के_आख़री_लम्हे।

कुछ सपने हमने भी संजोए थे, बैठकर अपने घर आंगन में।
कुछ घर की जिम्मेदारियों ने, कुछ उम्र निगल कर चली गई।।

ये जिंदगी भी अच्छे दिनों का, लालच बहुत दिखाती है।
काम पर लगा कर मुझको, मेरा इतवार लेकर चली गई।।

कुछ दिनों तक खुशियां बिखरी रहीं, मेरे छोटे से आंगन में।
थोड़ी परंपराओं ने, बाकी बची नई नस्लों के संग चली गई।।

चाहते तो हम भी थे थोड़ा अपना अपना बचाकर रख लेते।
कुछ मेरी खामोशियां, बाकी पत्नी की ज़िद लेकर चली गई।।

सफ़र की शुरुआत जहां से की, आकर वहीं बैठ गए।
बेटो को बहुएं बांध गई, बेटियां उनके पीहर चली गई।।

✍️©️सुरेश बुनकर 'बड़ीसादड़ी'

1 comment:

  1. अति उत्तम ,सच्चाई आज के युग की

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सांवली बावली सी लड़की...........!!!!

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