नए दौर के रिश्ते, दिलों में मातम पसरा है।
नफरतें आम हुईं कौन दिलों में ठहरा है।।
टूट जाती हैं कसमें हर पल साथ निभाने की।
न जाने क्यों दिलों में शक का दाग़ गहरा है।।
बातें करते हुए जिनको सुकुन मिलता था।
कहते हुए सुना अब थोड़ा कान से बहरा हैं।।
भरोसा भी नहीं ठहरता ज्यादा दिनों तक।
सभी के घरों में चालाकियों का पहरा है।।
छुपा लेते हैं हर ग़म चेहरे से बताते नहीं।
नम हो जाएं तो कहते आंखों में कचरा है।।
तुम क्या बताओगे कुछ नहीं जानते 'सुरेश'।
हंसती आंखें तुम्हारी योवन कल निखरा है।।
✍️सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी
स्वरचित एवं अप्रकाशित
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