ख्वाहिश है जिंदगी में कुछ कर जाने की।
अक्स को संवारने में कितने शिशे टूट गए।
गिरते लड़खते हर बार ख़ुद को संभाला है।
लड़खड़ाती जिंदगी में कितने रिश्ते छुट गए।।
कल तक जो अपने मेरे सामने अच्छे रहते थे।
छोड़कर अकेला मेरी शाखाओं को लुट गए।।
कितनी बार टूटा हूं मैं खुद को बनाते बनाते।
नए इरादों के सामने कमजोर पुर्जे टूट गए।।
✍️सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी
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