तुम्हारे हाथों की गर्मी मुझे अहसास कराती।
ठंडी रातों की मिठी बातें तेरी याद दिलाती।
चाहत होती ऐसे ही बैठे रहे डाले हाथों में हाथ।
थोड़ी नटखट होकर, मुझे अपने गले से लगाती।
जीवन भर साथ निभाने की बातें करता।
हल्की सी मुस्कान देकर अपनी हां बताती।
हां हैं तुम्हारे हाथों की गर्मी मुझमें अभी तक।
वो हर पल हरदम रहकर संग साथ निभाती।
✍️सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी
No comments:
Post a Comment