Saturday, November 28, 2020

मेरे अंदर की कहानियां


मेरे अंदर की कहानियां सो गई है।
मेरे चेहरे पर उदासियां छा गई है।
ना कोई समझौता करता मेरे अभिनय से।
मगर एक किरण जागी है मेरे हिमालय से।
सब कुछ करती है मगर कुछ कहती नहीं।
पिकर आंसुओं के घूंट कुछ कहती नहीं।
वो वक्त की मारी है अपने ही घर में हारी है।
ढल जाती है हर सांचे में थोड़ी सी गुणकारी है।
कहती अभी वक्त है ठहरों मेरा वक़्त आने दो।
आने वाला कल कहेगा ठहरा हूं उसको जाने दो।

✍️सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी

Friday, November 27, 2020

खुद को बनाते बनाते..............।


ख्वाहिश है जिंदगी में कुछ कर जाने की।
अक्स को संवारने में कितने शिशे टूट गए।

गिरते लड़खते हर बार ख़ुद को संभाला है।
लड़खड़ाती जिंदगी में कितने रिश्ते छुट गए।।

कल तक जो अपने मेरे सामने अच्छे रहते थे।
छोड़कर अकेला मेरी शाखाओं को लुट गए।।

कितनी बार टूटा हूं मैं खुद को बनाते बनाते।
नए इरादों के सामने कमजोर पुर्जे टूट गए।।

✍️सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी

Saturday, November 21, 2020

संग मेरे.................!


संग मेरे........

थाम कर हाथ मेरा खुद को संग मेरे वनवास कर दो।
दिल की बंजर भूमि पर सावन सी बरसात कर दो।।

✍️सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी




Wednesday, November 18, 2020

तुम्हारे हाथों की गर्मी...............


तुम्हारे हाथों की गर्मी मुझे अहसास कराती।
ठंडी रातों की मिठी बातें तेरी याद दिलाती।

चाहत होती ऐसे ही बैठे रहे डाले हाथों में हाथ।
थोड़ी नटखट होकर, मुझे अपने गले से लगाती।

जीवन भर साथ निभाने की बातें करता।
हल्की सी मुस्कान देकर अपनी हां बताती।

हां हैं तुम्हारे हाथों की गर्मी मुझमें अभी तक।
वो हर पल हरदम रहकर संग साथ निभाती।

✍️सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी

Sunday, November 15, 2020

जो दिल को भाए............।


मेरे हमदम, मेरे हमसफ़र खास हो तुम।
मरुधर पानी को तरसे, वो प्यास हो तुम।
मैं कह नहीं सकता, सजाकर लफ़्ज़ों में।
जो दिल को भाए, वो अहसास हो तुम।
✍️सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी

Friday, November 13, 2020

बीते लम्हें................।


कभी बैठकर आपस में बातें कर लेते हैं।
ये बीते लम्हें अक्सर आंखें नम कर देते हैं।
✍️सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी

तुम्हारा चेहरा...............।

लोग पुछते रहते हैं मैं उनको झूठ कहता रहता हूं।
नहीं हो पास मेरे पर मैं खुद में तुम्हें ढूंढता रहता हूं।
कहने को मेरे पास यादें हैं, बातें हैं और कुछ किस्से हैं।
तुम्हारा चेहरा देखता रहता हूं, बातें करता रहता हूं।
✍️ सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी

Tuesday, November 10, 2020

घर बनता है

जब विश्वास सच्चा हो तो प्रेम पनपता है।
तब जाकर कहीं एक घर, घर बनता है।

✍️सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी

मैं................


पकड़ रखा है गला मेरा पर मैंने हाथ थाम रखा है।
नहीं हूं दिल में जिसके पर एक वहम पाल रखा है।

नहीं हूं मैं तुम्हारी मुझको भुल जाने की कहता है। 
रिश्ते बचाने खुद को मारकर जिन्दा लाश कर रखा है।

सांवली बावली सी लड़की...........!!!!

हैं एक सांवली-बावली सी लड़की,  जो मेरे साथ सफ़र करती है  कोन हूं, कैसा हूं, मालूम नहीं, फिर भी ना कोई सवाल करती है। सोते-जागते, ...