Monday, October 17, 2022

स्त्रियां


स्त्रियां भी न जाने कब, 
रंग के किस रंग में रंग जाती हैं।
समर्पित होकर सफ़र में,
खुद ही खुद में ढ़ल जाती हैं।
पुष्पा से पुष्प, 
दिपिका से दीप,
अर्पणा से अर्पण,
साधना से साधक,
ज्योति से ज्योत,
पुजा से पूजन,
मोनिका से मोन,
चेतना से चेतन्य,
भावना से भाव,
न जाने कितने भावों को,
अपने भीतर ही भीतर
सृजन करती रहती है।
अपनी उर्जा से कर देती है
अपने घर, आंगन को रोशन।

स्वरचित एवं मौलिक 
✍️सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी

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