Thursday, October 13, 2022

एक सफ़र ऐसा हो..........!

यूं तो मैं हर दिन सफ़र में रहता हूं।
मगर नादान दिल भी न जाने क्यों 
तुम्हारे साथ एक सफ़र चाहता हैं।
जिसकी न कोई मंज़िल हो 
बस सफ़र चलता रहें। 
मैं, तुम ओर ये अपना सफ़र।
बस की खिड़की वाली सीट हो, 
हाथों में एक दूजे का हाथ, 
कभी तुम्हारे कंधे पर मेरा सर,
कभी मेरे कंधे पर तुम्हारा सर,
करते रहे मीठी मीठी बातें 
संग लिए एक प्यारी मुस्कान।
इस दुनियादारी से दूर
सुकून भरें पल हो।
बस चाहता हूं 
मेरे संग तुम्हारा 
एक सफ़र ऐसा...........!!!

स्वरचित एवं मौलिक 
✍️सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी

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