Wednesday, April 21, 2021

#जिंदगी_के_आख़री_लम्हे।

कुछ सपने हमने भी संजोए थे, बैठकर अपने घर आंगन में।
कुछ घर की जिम्मेदारियों ने, कुछ उम्र निगल कर चली गई।।

ये जिंदगी भी अच्छे दिनों का, लालच बहुत दिखाती है।
काम पर लगा कर मुझको, मेरा इतवार लेकर चली गई।।

कुछ दिनों तक खुशियां बिखरी रहीं, मेरे छोटे से आंगन में।
थोड़ी परंपराओं ने, बाकी बची नई नस्लों के संग चली गई।।

चाहते तो हम भी थे थोड़ा अपना अपना बचाकर रख लेते।
कुछ मेरी खामोशियां, बाकी पत्नी की ज़िद लेकर चली गई।।

सफ़र की शुरुआत जहां से की, आकर वहीं बैठ गए।
बेटो को बहुएं बांध गई, बेटियां उनके पीहर चली गई।।

✍️©️सुरेश बुनकर 'बड़ीसादड़ी'

Saturday, April 10, 2021

#समय-चक्र


कुछ बातें हैं जो अब किसी से कहता नहीं।
दिखाकर हंसता चैहरा खुद को मना लेता हूं।।

परिवार में पापा, मां, बिवी ओर बच्चें भी हैं।
पता न चले उनको एक दो रोटी खा लेता हूं।।

बड़ी मुसीबतों से गुजर रहा हूं आजकल।
कोई हंसे न मैं अपनी बातें दबा लेता हूं।।

मदद भी मांगता हूं इस मुश्किल घड़ी में ।
जो करे, ना करें मैं दुआएं मांग लेता हूं।।

कुछ लोग जो अभी हंस रहे हैं मुझ पर।
उनके लिए भी स्नेह बनाकर रख लेता हूं।

बुरा वक्त किसी को कहकर नहीं आता।
मैं हमेशा आम इंसान बनकर रह लेता हूं।।

✍️©️ सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी

Saturday, April 3, 2021

घर के सामने

घर के सामने।

पहली ही नज़र में दिल में उतर गई वो लड़की।
वो रहती भी है तो मेरे पास वाले घर के सामने।।

अक्सर गुजरती है देखकर मुझे बैठा बरामदे में।
कल उसकी पाजेब भी खुली मेरे घर के सामने।।

मैं अक्सर नजरें चुराकर देख लेता उसको मगर।
आज सहेलियों संग बैठी रही खुद के घर के सामने।।

यूं तो अभी तक एक भी मुलाकात नहीं हुई हमारी।
कल एक ही रिक्शे में बैठे अपने अपने घर के सामने।।

कहना तो चाह रहे हम दोनों अपने मन की बातें।
मगर हम आज फिर रुक गए अपने घर के सामने।।

✍️©️सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी

सांवली बावली सी लड़की...........!!!!

हैं एक सांवली-बावली सी लड़की,  जो मेरे साथ सफ़र करती है  कोन हूं, कैसा हूं, मालूम नहीं, फिर भी ना कोई सवाल करती है। सोते-जागते, ...