Friday, July 23, 2021

#अच्छा है..........!



रोज मिलकर चले जाते हों।
आज ठहर जाओ तो अच्छा है।।

कुछ बातें जो करनी हैं तुमसे।
ज़रा बैठो पास मेरे तो अच्छा है।।

कुछ बातें जो अक्सर भुल जाते हों।।
लबों से बयां भी कर दो तो अच्छा है।।

बातों ही बातों में रूठती बहुत हूं मैं।
अब थोड़ा मना भी लो तो अच्छा है।।

तुम्हारा घर छोटा, मिट्टी का आंगन हैं।
आंगन की तुलसी बना लो तो अच्छा है।।

मुझको परवाह नहीं है ज़माने भर की।
बस तुम्हारा साथ मिलें तो अच्छा है।।

तुम्हारे सफ़र में साथ चलुंगी हर पल।
अब थाम लो दामन मेरा तो अच्छा है।।

स्वरचित मौलिक रचना

✒️सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी

Tuesday, July 13, 2021

#इश्क़__हैं?

पहले दिन की खामोशियां ओर वो अनजाने चेहरे थे।
दो चार बातें करके हमने दोस्ती के नाते जोड़ दिए।

कल श्याम को मन्दिर में देख लिया हमको आते हुए।
आंखें बंद करके श्री जी की ओर हाथ जोड़ दिए।।

जुबां पर आकर अक्सर रुक जाती थी दिल की बातें।
रखकर कागज आज उसकी किताब के पन्ने मोड़ दिए।।

तुमसे बातें करना दिल को कितना अच्छा लगता है।
मैंने अपना हर दिन हर पल तुम्हारे साथ जोड़ दिए।।

हम जानते हैं तुम कह नहीं सकते हो अपने दिल की।
इसलिए आजकल हमने ज्यादा बतियाना छोड़ दिए।।

हर इश्क मुकम्मल हो इतना आसान नहीं सुरेश
मैंने तुम्हारी गली के चक्कर लगाना छोड़ दिए।।

स्वरचित मौलिक रचना

✒️सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी

Wednesday, July 7, 2021

₹मेरे_दिन



निकल जाता हूं सुबह सुबह, हाथ में टिफिन लेकर घर से।
देखता हूं चौराहों पर, काम की तलाश में भीड़ होती हैं।।

मैं भी जाकर खड़ा हो जाता हूं, कभी तो काम मिलेगा।
वहीं थोड़ा विश्वास ओर फिर कल आने की बात होती है।।

आज घर लौटते वक्त मैंने बाजार से होकर गुजरना चाहा।
जरुरतों के आगे कहां खुशियां खरीदने की बात होती हैं।।

ये जिंदगी भी न जाने कोन कोन से दिन दिखाती रहती हैं।
हम जैसों के लिए सपने, बस  देखने की रात होती हैं।।

न जाने कितने दिनों का सफ़र हैं बस चलते रहना है "सुरेश"।
घनघोर अंधेरी रात के बाद एक नई सुबह की बात होती है।।

स्वरचित मौलिक रचना

✒️सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी

सांवली बावली सी लड़की...........!!!!

हैं एक सांवली-बावली सी लड़की,  जो मेरे साथ सफ़र करती है  कोन हूं, कैसा हूं, मालूम नहीं, फिर भी ना कोई सवाल करती है। सोते-जागते, ...