Tuesday, June 29, 2021

#आषाढ़_के_बादल

हवाएं चलने लगी है, गांवों में बादलों की दस्तक है।
नजरें टिकी हुई घनघोर घटाओं की ओर मस्तक है।
प्रकृति के यौवन को अब ओर ना बिखरने दो।।
तपती रहीं जेठ की गर्मी, आषाढ़ के बादल बरसने दो।

फिर बहने लगेंगी कल कल करती गांव की छोटी नदियां।
सांझ ढले गीत गाएगी मिलकर गांव की सारी संखिया।
मौसम भी सुहाना हो जाएगा घूमने का मौका मिल जाएगा।
बनेंगे चाट पकौड़ी सबको खाने में मजा आ जाएगा।
बहुत दिनों से दुबके रहे अब घर से बाहर निकलने दो।
तपती रहीं जेठ की गर्मी अब आषाढ़ के बादल बरसने दो।

मौलिक एवं अप्रकाशित

✍️सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी

Thursday, June 10, 2021

#नए_दौर_के_रिश्ते

नए दौर के रिश्ते, दिलों में मातम पसरा है।
नफरतें आम हुईं कौन दिलों में ठहरा है।।

टूट जाती हैं कसमें हर पल साथ निभाने की।
न जाने क्यों दिलों में शक का दाग़ गहरा है।।

बातें करते हुए जिनको सुकुन मिलता था।
कहते हुए सुना अब थोड़ा कान से बहरा हैं।।

भरोसा भी नहीं ठहरता ज्यादा दिनों तक।
सभी के घरों में चालाकियों का पहरा है।।

छुपा लेते हैं हर ग़म चेहरे से बताते नहीं।
नम हो जाएं तो कहते आंखों में कचरा है।।

तुम क्या बताओगे कुछ नहीं जानते 'सुरेश'।
हंसती आंखें तुम्हारी योवन कल निखरा है।।

✍️सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी
     स्वरचित एवं अप्रकाशित

सांवली बावली सी लड़की...........!!!!

हैं एक सांवली-बावली सी लड़की,  जो मेरे साथ सफ़र करती है  कोन हूं, कैसा हूं, मालूम नहीं, फिर भी ना कोई सवाल करती है। सोते-जागते, ...