Sunday, November 13, 2022

सफ़र.... इश्क़ की डगर

अभी तो सिलसिला, शुरू हुआ है हमारा।
कितने दिन हो गए, पहचान बनाते बनाते।।

एक तुम हो कि, सहमे सहमे से रहते हो।
कितने दिन हो गए, बातें बनाते बनाते।।

अब तो आंखें, आंखों से बातें करने लगी है।
कितने दिन हो गए, नज़रें मिलाते मिलाते।।

तुमको फुर्सत कहां हैं, कि कुछ बोलों कभी।
कितने दिन हो गए, सफ़र में आते आते।।

कहने को कह दी, दिल की बातें *सुरेश*।
कितने दिन हो गए, इकरार करते करते।

तुम्हारे बिना सफ़र, अधुरा अधुरा रहता है।
कितने दिन हो गए, इन्तजार करते करते।।

स्वरचित एवं मौलिक रचना 
✍️सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी

Tuesday, November 1, 2022

सफ़र...... सर्द सुबह 💕


एक खुबसूरत सफ़र है।
सर्द सुबह, ठंडी हवाएं।
खिड़की के पास,
मेरी एक सीट, 
जहां बैठता हूं।
सफ़र तो सफ़र है। 
जाने पहचाने।
कुछ अनजाने। 
मगर हम मुसाफ़िर 
अपनी मंजिल तक
सफ़र में रहते हैं।
सफ़र तो सफ़र हैं 
कोई हम सफ़र है
बैचेन सी रहती 
एक दीदार को,
ढूंढ लेती है नज़रें 
ठहर जाती है। 
एक चेहरे पर
ना इशारे ना बातें
आंखों ही आंखों से 
समझ लेते हैं हम
हाल एक दूजे का 
हां इसी सफ़र में 
हां हां इसी सफ़र में
मेरी, उसकी जिंदगी है।
एक मनमीत जैसी 
बातें, यादें, क़िस्से 
कुछ उसके हिस्से
कुछ मेरे हिस्से 
सुलझे हुए रिश्ते।
है कितने अच्छे।
दिल के सच्चे। 
इस खुबसूरत सफ़र में....
इस खुबसूरत सफ़र में....
💕💕💕💕
स्वरचित एवं मौलिक 
✍️सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी

सांवली बावली सी लड़की...........!!!!

हैं एक सांवली-बावली सी लड़की,  जो मेरे साथ सफ़र करती है  कोन हूं, कैसा हूं, मालूम नहीं, फिर भी ना कोई सवाल करती है। सोते-जागते, ...