हैं एक सांवली-बावली सी लड़की,
जो मेरे साथ सफ़र करती है
कोन हूं, कैसा हूं, मालूम नहीं,
फिर भी ना कोई सवाल करती है।
सोते-जागते, उठते-बैठते, खाते-पीते।
भरी महफिल में यूं कभी अकेले।
बनकर सहारा वो जाने अनजाने में
खुद से भी ज्यादा ध्यान रखती है।
हैं एक सांवली-बावली सी लड़की,
जो मेरे साथ सफ़र करती है।
हां हैं एक ........................।
कभी कभी शहरों की सूनी गलियों में
खामोशियां ओढ़े टहलते टहलते
या बगिया की किसी बैठक पर
कभी मुझ को अकेला देखा होगा।
चुपके से आकर बैठ जाया करती
ना कोई प्रश्नों भरें सवाल करतीं
नज़रों से नज़रें मिलाकर देखा करतीं।
अकेला नहीं हूं विश्वास जताया करतीं।
हैं एक सांवली-बावली सी लड़की,
जो मेरे साथ सफ़र करती है।
हां हैं एक..........................।
यूं तो अक्सर सफ़र में रहता हूं
किसी एक सीट पर बैठा रहता हूं
नज़रें भी न जाने कहां भटकती रहती।
मगर एक चेहरे पर आकर ठहरी रहतीं।
जो कभी कभी पास बैठकर बातें करतीं।
सफ़र में वो यूं मेरे साथ हमसफ़र रहतीं।
मेरे कहने पर दिल लगाया नहीं करतीं।
मगर दिल से दोस्ती निभाया करतीं।
हैं एक सांवली-बावली सी लड़की,
जो मेरे साथ सफ़र करती है।
हां हैं एक..........................।
जिनसे मोहब्बत वहीं किस्मत में नहीं होती
चाहते बढ़ती रहती मगर कम नहीं होती
वैसे तो किस्मत का मालूम नहीं
शायद लकीरों में नाम होगा या नहीं
मगर उम्मीदें एक दूजे को जोड़े रखती
सफ़र को सफ़र से जोड़े रखती।
यूं पुरा हो कर भी आधा रखती।
आधे हिस्से पर वो राज करती।
हैं एक सांवली-बावली सी लड़की,
जो मेरे साथ सफ़र करती है।
हां हैं एक..........................।
न जाने क्यों हमारी दोस्ती प्यार पर नज़रें है
दुनिया के सारे प्रश्न हमी पर आकर ठहरे हैं
ये दुनिया है जितने चेहरे उतनी बातें।
किसी को यूं अधुरा छोड़ कर नहीं जातें।
थाम लेता है फिर कोन कहां बिछड़ता है।
रिश्ता तो प्रेम ओर विश्वास से पनपता है।
जानता हूं मेरे दिल में वही एक रहती है।
देखा है घर की दहलीजें राहें तकती है।
हैं एक सांवली-बावली सी लड़की,
जो मेरे साथ सफ़र करती है।
हां हैं एक..........................।
मौलिक एवं स्वरचित कविता
✍️सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी