एक गांव उसकी नुक्कड़ वाली गली पर नज़रे अब भी ठहर जाती है।
न जाने फिर कब आएगी एक हाथ को हिलाकर बस को रुकवाकर।
आकर बैठ जाएगी उस सीट पर जो अक्सर खाली छोड़ देता हू।
आती है तो लाती है साथ अपने एक प्यारी सी मुस्कान।
बिखेर देती है मुझ पर ना कोई रिश्ता नाता।
मगर कुछ तो था अपनापन सा जो खींच लेता था मुझको।
बहुत दिन हो गए है उसको सफर मे आए मगर आज अचानक।
ठहर गई नज़र वही जहा ठहर गई बस धीरे से चढ़कर।
खामोशी पहनकर आकर खड़ी हो गई आज कोई सीट खाली नही थी।
नज़रे उसकी अब भी भटक रही थी। शायद किसी को ढूंढ रही थी।
जो नही आया चित्र कोई आंखो के सामने।
लगाकर कानो मे एयरफोन गानो के साथ गुनगुनाने लगी।
नज़रे खिड़की से बाहर कही ठहरी हुई थी।
बस अपनी गति वेग से चल रही थी ।
धीरे-धीरे बस मे खडी भीड़ कम हो रही थी।
फिर से नज़रे उठी अब कही जाकर ठहर गई थी।
मिली नज़रे तो हल्की सी मुस्कान के साथ झुक गई धी।
वो नज़रे फिर मिल रही थी जो न जाने कब से दूर थी।
जो कहना चाह रही थी अपने दिल की मगर कुछ कह न पाई।
आज फिर मिल रही थी जो कुछ कहने को आतुर है।
समझ सकते अपनी मुस्कान ओर लबो पर आकर रूके हुए अहसास को।
ये संवरती हुई जिन्दगी न जाने कब तक हमको एसे ही मिलाती रहेगी।
उसी बस मे उसी सीट आने वाले हर दिन को ।
ना कोई रिश्ता नाता है ना कोई जान पहचान ।
है तो बस इतना सा एक प्यारी सी नजर।
एक प्यारी सी मुस्कान।