Sunday, September 12, 2021

#मैं बुनकर हूं।



मैं बुनकर हूं।

मैं बुनकर हूं।
करता रहता हूं 
थोड़ी सी बुनाई
सफर में,
राहों में, 
जो भी मिलते हैं 
बसा लेता हूं।
अपने दिल की 
हर धड़कन पर।
उनसे अपने 
रिश्तों के, 
संबंधों के, 
प्रेम को,
प्यार को,
मर्म को,
स्पर्श को,
भाव को,
अहसास को,
साधना को,
ममता को,
त्याग को ,
तपस्या को,
अपनत्व को,
अर्पण को,
समर्पण को,
ताकि सुलझा रहूं,
अपनों के बीच
अपना होकर
ताकि कोई उधेड़ न सके,
मेरी बुनी हुई 
रिश्तों की,
अपनों की 
छोटी सी
प्यारी सी
दुनिया को।

स्वरचित मौलिक रचना

✒️सुरेश बुनकर बड़ीसादड़ी

सांवली बावली सी लड़की...........!!!!

हैं एक सांवली-बावली सी लड़की,  जो मेरे साथ सफ़र करती है  कोन हूं, कैसा हूं, मालूम नहीं, फिर भी ना कोई सवाल करती है। सोते-जागते, ...